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Sunday, February 6, 2011

गीता - सार


गीता - सार 
  • क्यों व्यर्थ की चिंता करते होकिससे व्यर्थ डरते होकौन तुम्हें मार सक्ता है?आत्मा ना पैदा होती है मरती है। 
  • जो हुआवह अच्छा हुआजो हो रहा है,वह अच्छा हो रहा हैजो होगावह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप  करो। भविष्य की चिन्ता  करो। वर्तमानचल रहा है।
  • तुम्हारा क्या गयाजो तुम रोते होतुमक्या लाए थेजो तुमने खो दियातुमनेक्या पैदा किया थाजो नाश हो गयातुम कुछ लेकर आएजो लिया यहीं सेलिया। जो दियायहीं पर दिया। जो लिया,इसी (भगवानसे लिया। जो दियाइसीको दिया।
  • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जोआज तुम्हारा हैकल और किसी का था,परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपनासमझ कर मग्न हो रहे हो। बस यहीप्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुममृत्यु समझते होवही तो जीवन है। एकक्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।मेरा-तेराछोटा-बड़ाअपना-परायामनसे मिटा दोफिर सब तुम्हारा हैतुमसबके हो।
  •  यह शरीर तुम्हारा है तुम शरीर केहो। यह अग्निजलवायुपृथ्वीआकाशसे बना है और इसी में मिल जायेगा।परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्याहो?
  • तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो।यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारेको जानता है वह भयचिन्ताशोक सेसर्वदा मुक्त है।
  • जो कुछ भी तू करता हैउसे भगवान केअर्पण करता चल। ऐसा करने से सदाजीवन-मुक्त का आन्दन अनुभव करेगा।

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