श्रीनाथ द्वारा
श्रीनाथ द्वारा हिन्दू धर्म की पुष्टि मार्गीय वैष्णवी शाखा की प्रमुख पीठ है। यहां पर प्रत्येक वर्ष देश एवं विदेश से लाखों वैष्णव श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते हैं। जी का दर्शन कर अपने जीवन को धन्य मानते हुए वापस लौट जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का उपनाम श्रीनाथ जी भी है और वे वल्लभ सम्प्रदाय द्वारा पूज्य रहे हैं। इस प्रकार हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में इसकी मान्यता है।
भौगोलिक स्थिति :-
श्रीनाथ द्वारा भारत के राजस्थान प्रान्त के राजसमन्द जनपद के अन्तर्गत बनास नदी के किनारे पर स्थित है तथा वल्लभ सम्प्रदाय का मुख्य तीर्थस्थल है। यह राजस्थान के प्रसिद्ध नगर उदयपुर से मात्र ४८ किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रिय राजमार्ग संख्या ८ पर स्थित है। वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ होने के कारण यहां पर श्रीनाथ जी का भव्य मन्दिर बना हुआ है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है। श्रीनाथ द्वारा के उत्तर में १७ किलोमीटर की दूरी पर राजसमन्द ,२२५ किलोमीटर की दूरी पर अजमेर ,२४० किलोमीटर की दूरी पर पुष्कर ,३८५ किलोमीटर की दूरी पर जयपुर एवं ६२५ किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली स्थित है। इसके दक्षिण में ४८ किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर ,३०० किलोमीटर की दूरी पर अहमदाबाद व ८०० किलोमीटर की दूरी पर बम्बई शहर स्थित है। श्रीनाथ द्वारा से पश्चिम की ओर १८० किलोमीटर दूरी पर फालना व २२५ किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर नगर स्थित है। इसके पूर्व में मण्डियाना रेलवे स्टेशन १२ किलोमीटर की दूरी पर ,मावली रेलवे स्टेशन २८ किलोमीटर की दूरी पर तथा चित्तौड़गढ़ एवं कोटा नगर कमशः ११० किलोमीटर व १८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। श्रीनाथ द्वारा के निकटवर्ती रेलवे स्टेशन मावली एवं उदयपुर से देश के सभी प्रमुख नगरों के लिए रेल सेवा उपलब्ध है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
श्रीनाथ द्वारा मन्दिर की प्रधान मूर्ति को मुस्लिम राजाओं के आक्रमण के डर से सन् १६६९ ई० में गोवर्धन पर्वत से नाथद्वारा ले आई गई थी। श्रीकृष्ण की बाल लीला का चित्रण विशेष रूप से इस मंदिर की दीवारों में किया गया है और इस मंदिर का बाह्य स्वरूप मंदिर जैसा नहीं है बल्कि इसे भगवान श्रीकृष्ण के आवास स्थल के रूप में ही ३३७ वर्ष पूर्व बनवाया गया था। इसके शिखर पर एक कलश एवं सुदर्शन चक्र रखा है तथा नित्य सप्त ध्वज इस पर लहराता रहता है।
कहा जाता है कि महाप्रभु वल्ल्भचार्य जब इस क्षेत्र में प्रथम बार पधारे थे तो रात्रि विश्राम के दौरान उन्होंने स्वप्न में श्रीकृष्ण भगवान के दर्शन किये थे तथा स्वप्न में ही उन्हें ब्रज आने का आमंत्रण भी मिला था। इस आदेश के अनुपालन में जब वे ब्रज पहुंचे तो भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गोवर्धन पर्वत से नीचे आकर उन्हें अपने विराट रूप के दर्शन दिए थे और तभी उन्हें पुष्टि मार्ग पर चलने के निर्देश भी दिए थे। स्थानीय सहयोग से स्वामी वल्ल्भाचार्य ने वहां गोवर्धन पर्वत पर श्रीकृष्ण के भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया एवं उसमें स्थापित की गई मूर्ति को श्रीनाथजी की संज्ञा दी गई। मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा मथुरा पर आक्रमण करने के दौरान स्वामी गोविन्द जी ने श्रीनाथजी की मूर्ति को रथ पर रखकर मेवाड़ ले आये थे तथा वैदिक रीति से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी दिन शनिवार को श्रीनाथ जी की पुनर्स्थापना करा दी गई और बाद में इसी स्थान को श्रीनाथ द्वारा के नाम से जाना जाने लगा।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
श्री नाथद्वारा अरावली पर्वत की सुरम्य उपत्यकाओं के मध्य झीलों की नगरी उदयपुर से मात्र ४८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित होने के कारण यह अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। वैसे तो यहां का प्रमुख मन्दिर श्री नाथद्वारा ही है किन्तु इसके निकट पुष्टिमार्ग की प्रथम पीठ के रूप में श्रीविट्ठल नाथ जी एवं श्री हरीराय महाप्रभु की बैठक तथा श्रीवनमाली लाल जी का मंदिर एवं मीरा मन्दिर स्थित है। यहां से २ किलोमीटर की दूरी पर श्री नाथजी की गौशाला ,लालबाग एवं संग्रहालय राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही स्थित है। प्रकृति के आंचल में निर्मित श्री गणेश जी का मन्दिर यहां से थोड़ी दूर पर स्थित गणेश टेकरी में बनवाया गया है। यहां का सूर्यास्त देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से आकर सायंकाल में यहां उपस्थित होते हैं। प्राकृतिक अन्य दर्शनीय स्थलों में रामभोला ,गणगौर बाग ,कछुवायी बाग़ ,बनास नदी ,गिरिराज पर्वत ,महेश टेकरी ,श्रीवल्ल्भ आश्रम ,नंदसमंद बांध व हल्दी घाटी प्रमुख हैं। अन्य धार्मिक स्थलों में श्री हरिराम जी की बैठक ,गायत्री शक्तिपीठ ,रामेष्वर महादेव मंदिर ,द्वारिकाधीश मंदिर, कुन्तेश्वर महादेव मंदिर ,श्रीचारभुजा मंदिर श्रीरोकडिया हनुमान जी का मंदिर ,श्री रूपनारायण मंदिर प्रमुख हैं। यहां से २८ किलोमीटर दूरी पर श्री एकलिंग जी का मंदिर है जिसमें भगवान शिव की ८ वीं शताब्दी में निर्मित मूर्ति स्थापित की गई है। यहां से थोड़ी दूर पर ही रकमगढ का छप्पर नामक स्थान है जहां अंग्रेजों एवं तात्याटोपे के मध्य युद्ध हुआ था। यहीं पर वृहदपेय जल परियोजना बघेरी का नाका में बनास नदी पर बांध बनाकर बनाई गई है। कुम्भलगढ वन्यजीव अभ्यारण्य यहां से ५५ किलोमीटर की दूरी पर है जहां पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। विश्व प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर यहां से २२ किलोमीटर की दूरी पर है तथा ६० किलोमीटर की दूरी पर परशुराम महादेव जी का मंदिर स्थित है। अणुव्रत विश्व भारती भवन ,दयाल शाह का किला ,राजसमन्द झील ,नौचंदी पाल यहां के अन्य दर्शनीय स्थल हैं जो थोड़ी ही दूरी पर स्थित हैं।
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