श्री सुदर्शन चक्र : सभी अनिष्ट संहारक महाचक श्री सुदर्शन चक्र : सभी अनिष्ट संहारक महाचक |
जगदगुरु शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती वर्तमान काल में श्रीमहाविष्णु का सुदर्शन चक्र सभी प्रकार के अनिष्टों विपत्तियों का संहारक है। श्रीमहाविष्णु के सुदर्शन चक्र की स्तुति में कहा गया है : 'आप ही धर्म हैं, आप ही सत्य हैं, आप ही प्ररेक घोषणा हैं, आप ही त्याग की बलि हैं। आप ही समस्त ब्रह्माण्ड के स्वामी संरक्षक हैं और आप ही परमेश्वर के हाथों में रिपु जन संहारक परमास्त्र हैं। आप ही परमेश्वर की दिव्य दृष्टि हैं। इसी सुदृष्टि के कारण आप सुदर्शन कहलाये। आप की क्रियाओं से सभी की उत्पत्ति हुई।'
त्वं धर्मस त्वं ऋतम् सत्यम्। त्वं लोका-पालाह सर्वात्मा। त्वं यजनों खिला-यजन-भुक्। त्वं तेजह पुरुषं परम्।। श्रीसुदर्शन चक्र की महिमा शक्ति का विवरण वैष्णव उपनिषद्-सुदर्शन उपनिषद्, श्रीनृसिंह षटचक्र उपनिषद्, नृसिंपूर्वतापनीयोपनिषद् आदि में मिलता है। श्रीवैष्णव पंचरात्रिका, श्रीसुदर्शन संहिता, सुदर्शन स्मृति, सुदर्शन चक्र और पुराणों में श्रीमहाविष्णु के महास्त्र श्रीसुदर्शन चक्र का दिव्य वर्णन है। द्रष्टा ऋषियों ने सुदर्शन शतक, सुदर्शन अष्टक, सुदर्शन सहस्त्रनाम, सुदर्शन अष्टोत्तर शतनामावली, सुदर्शन गायत्री, सुदर्शन स्तुति, सुदर्शन महामंत्र, सुदर्शन मंत्र विनियोग, सुदर्शन ध्यान, श्रीसुदर्शन मूलमंत्र, श्रीसुदर्शन कवच, श्रीसुदर्शन हृदय, श्रीसुदर्शन षडाक्षर मंत्र आदि की रचना की। तांत्रिक साहित्य में श्रीसुदर्शन चक्र को श्रीब्रह्मास्त्र से भी शक्तिवान माना गया है।
वैष्णव मत के श्रीसुदर्शन चक्र होने से इसकी प्रवृत्ति सात्विक मानी गयी है। यही कारण है कि श्रीसुदर्शन महायज्ञ में आहुति में 'पद्म अर्थात् कमल के फूल' हवन की अग्नि में अर्पित किये जाते हैं। कमल के फूल और श्रीसुदर्शन चक्र की चमत्कारिक कथा है। ओढ़रदारी महारूद्र महादेव शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से श्रीविष्णु ने प्रतिदिन 1000 कमल पुष्प अर्पित करने का संकल्प कर अर्चना शुरू की। यहीं महारूद्र शिव ने प्रारम्भ की। एक दिन श्रीविष्णु 999 कमल पुष्प एकत्र कर पाये। श्रीविष्णु पूर्व संकल्प में 'एक कमल' कम होने से चिन्तित हुए। उन्हें ऐसे में स्मरण आया कि उन्हें 'कमल नयन' कहा जाता है। श्रीविष्णु ने अपना दाहिना नेत्र निकालकर महादेव शिव को चढ़़ाया। महादेव शिव श्रीविष्णु की भक्ति समर्पण त्याग निष्ठा से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और दिव्यास्त्रों में सर्वोत्तम सुदर्शन चक्र श्रीविष्णु को प्रदान किया। स्वाभाविक रूप से श्रीविष्णु का कमल पद्मनेत्र श्रीसुदर्शन चक्र बना। श्रीसुदर्शन चक्र को संवत्सर चक्र, सुरक्षा चक्र, मयाचक्र, कालचक्र और धर्मचक्र कहा जाता है। प्रासादों (देवालयों) में श्रीसुदर्शन चक्र के स्वरूप की प्रतिमाओं में स्थांगपहिया, प्रस्फुटित कमल आरेवाला और अलंकृत चक्र तीन रूपाकार मिलते हैं।
इस महाचक्र का वर्णन प्रसिद्ध प्रजापति ने किया। प्रजापति ने कहा : 'यह सुदर्शन नामक महाचक्र छह अक्षरों का है। इसीलिये यह छह अरोंसे युक्त होता है। छह दलोंवाला चक्र बनता है। ऋतुएं छह ही होती हैं। इसके अरों की समानता ऋतुओं से की जाती है। अर्थात् इसके छह दलों में छह ऋतुओं की भावना करनी चाहिए। इसकी मध्य नाभि में अरे प्रतिष्ठित होते हैं। यह सारा चक्र माया रूप नेमि में आवेष्टित होता है।
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भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ती कैसे हुई थी? क्या है इस के पीछे की कथा?
हमने भगवान विष्णु के स्वरुप में उनकी उंगली पर सुदर्शन चक्र घूमते देखा है। उंगली में सुदर्शन चक्र होने के कारण उन्हें चक्रधर भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस चक्र द्वारा जिस पर भी प्रहार किया जाता है यह उसका अंत कर के ही लौटता है। यह चक्र विष्णु जी के पास कृष्ण अवतार के समय भी था। उन्होंने इसी चक्र से जरासंध को पराजित किया था। शिशुपाल का वध भी इसी चक्र द्वारा किया गया था।
रामावतार में यह चक्र भगवान राम ने परशुराम जी को सौंप दिया था तथा कृष्णावतार में वापिस करने को कहा था।
आइए जानते हैं भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिलने से जुड़ी कथा के बारे में।
वामन पुराण में बताया गया है एक बहुत ताकतवर असुर था, जिसका नाम श्रीदामा था। उसने सभी देवतओं को पराजित कर दिया था। देवतओं को पराजित करने के बाद भी उसे संतुष्टि नहीं मिली। इसलिए उसने भगवान विष्णु के श्रीवत्स को छीनने की योजना बनाई।
भगवान विष्णु को जब श्रीदामा की इस योजना का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुए तथा उसे दंडित करने के लिए विष्णु जी भगवान शिव की तपस्या करने लगे। तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें एक चक्र प्रदान किया। उस चक्र को सुदर्शन चक्र के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव ने कहा कि यह अमोघ है, इसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता।
यह सुनकर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से सुदर्शन चक्र को परखने की इच्छा व्यक्त की तथा कहा कि इसे परखने के लिए मैं सबसे पहले इसका प्रहार आप पर ही करना चाहता हूँ।
भगवान शिव ने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र को परखने की अनुमति दे दी। विष्णु जी ने जब भगवान शिव पर सुदर्शन चक्र से प्रहार किया तो शिवजी के तीन खंड हो गए। यह सब देख कर विष्णु जी को अपने किये पर बहुत प्रयाश्चित हुआ। इसलिए वह शिवजी की अराधना करने लगे।
विष्णु जी की आराधना से शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि सुदर्शन चक्र के प्रहार से मेरा प्राकृत विकार ही कटा है। मैं और मेरा स्वभाव क्षत नहीं हुआ है यह तो अच्छेद्य और अदाह्य है।
उन्होंने कहा कि मेरे शरीर के जो तीन खंड हुए हैं अब वह हिरण्याक्ष, सुवर्णाक्ष और विरूपाक्ष महादेव के नाम से जाने जाएंगे। भगवान शिव अब इन तीन रुपों में भी पूजे जाते हैं।
सुदर्शन चक्र मिलने के पश्चात भगवान विष्णु तथा श्रीदामा के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र के प्रयोग से श्रीदामा का वध कर दिया। इसके बाद से सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के साथ सदैव रहने लगा।
जगदगुरु शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती वर्तमान काल में श्रीमहाविष्णु का सुदर्शन चक्र सभी प्रकार के अनिष्टों विपत्तियों का संहारक है। श्रीमहाविष्णु के सुदर्शन चक्र की स्तुति में कहा गया है : 'आप ही धर्म हैं, आप ही सत्य हैं, आप ही प्ररेक घोषणा हैं, आप ही त्याग की बलि हैं। आप ही समस्त ब्रह्माण्ड के स्वामी संरक्षक हैं और आप ही परमेश्वर के हाथों में रिपु जन संहारक परमास्त्र हैं। आप ही परमेश्वर की दिव्य दृष्टि हैं। इसी सुदृष्टि के कारण आप सुदर्शन कहलाये। आप की क्रियाओं से सभी की उत्पत्ति हुई।'
त्वं धर्मस त्वं ऋतम् सत्यम्। त्वं लोका-पालाह सर्वात्मा। त्वं यजनों खिला-यजन-भुक्। त्वं तेजह पुरुषं परम्।। श्रीसुदर्शन चक्र की महिमा शक्ति का विवरण वैष्णव उपनिषद्-सुदर्शन उपनिषद्, श्रीनृसिंह षटचक्र उपनिषद्, नृसिंपूर्वतापनीयोपनिषद् आदि में मिलता है। श्रीवैष्णव पंचरात्रिका, श्रीसुदर्शन संहिता, सुदर्शन स्मृति, सुदर्शन चक्र और पुराणों में श्रीमहाविष्णु के महास्त्र श्रीसुदर्शन चक्र का दिव्य वर्णन है। द्रष्टा ऋषियों ने सुदर्शन शतक, सुदर्शन अष्टक, सुदर्शन सहस्त्रनाम, सुदर्शन अष्टोत्तर शतनामावली, सुदर्शन गायत्री, सुदर्शन स्तुति, सुदर्शन महामंत्र, सुदर्शन मंत्र विनियोग, सुदर्शन ध्यान, श्रीसुदर्शन मूलमंत्र, श्रीसुदर्शन कवच, श्रीसुदर्शन हृदय, श्रीसुदर्शन षडाक्षर मंत्र आदि की रचना की। तांत्रिक साहित्य में श्रीसुदर्शन चक्र को श्रीब्रह्मास्त्र से भी शक्तिवान माना गया है।
वैष्णव मत के श्रीसुदर्शन चक्र होने से इसकी प्रवृत्ति सात्विक मानी गयी है। यही कारण है कि श्रीसुदर्शन महायज्ञ में आहुति में 'पद्म अर्थात् कमल के फूल' हवन की अग्नि में अर्पित किये जाते हैं। कमल के फूल और श्रीसुदर्शन चक्र की चमत्कारिक कथा है। ओढ़रदारी महारूद्र महादेव शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से श्रीविष्णु ने प्रतिदिन 1000 कमल पुष्प अर्पित करने का संकल्प कर अर्चना शुरू की। यहीं महारूद्र शिव ने प्रारम्भ की। एक दिन श्रीविष्णु 999 कमल पुष्प एकत्र कर पाये। श्रीविष्णु पूर्व संकल्प में 'एक कमल' कम होने से चिन्तित हुए। उन्हें ऐसे में स्मरण आया कि उन्हें 'कमल नयन' कहा जाता है। श्रीविष्णु ने अपना दाहिना नेत्र निकालकर महादेव शिव को चढ़़ाया। महादेव शिव श्रीविष्णु की भक्ति समर्पण त्याग निष्ठा से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और दिव्यास्त्रों में सर्वोत्तम सुदर्शन चक्र श्रीविष्णु को प्रदान किया। स्वाभाविक रूप से श्रीविष्णु का कमल पद्मनेत्र श्रीसुदर्शन चक्र बना। श्रीसुदर्शन चक्र को संवत्सर चक्र, सुरक्षा चक्र, मयाचक्र, कालचक्र और धर्मचक्र कहा जाता है। प्रासादों (देवालयों) में श्रीसुदर्शन चक्र के स्वरूप की प्रतिमाओं में स्थांगपहिया, प्रस्फुटित कमल आरेवाला और अलंकृत चक्र तीन रूपाकार मिलते हैं।
इस महाचक्र का वर्णन प्रसिद्ध प्रजापति ने किया। प्रजापति ने कहा : 'यह सुदर्शन नामक महाचक्र छह अक्षरों का है। इसीलिये यह छह अरोंसे युक्त होता है। छह दलोंवाला चक्र बनता है। ऋतुएं छह ही होती हैं। इसके अरों की समानता ऋतुओं से की जाती है। अर्थात् इसके छह दलों में छह ऋतुओं की भावना करनी चाहिए। इसकी मध्य नाभि में अरे प्रतिष्ठित होते हैं। यह सारा चक्र माया रूप नेमि में आवेष्टित होता है।
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भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ती कैसे हुई थी? क्या है इस के पीछे की कथा?
हमने भगवान विष्णु के स्वरुप में उनकी उंगली पर सुदर्शन चक्र घूमते देखा है। उंगली में सुदर्शन चक्र होने के कारण उन्हें चक्रधर भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस चक्र द्वारा जिस पर भी प्रहार किया जाता है यह उसका अंत कर के ही लौटता है। यह चक्र विष्णु जी के पास कृष्ण अवतार के समय भी था। उन्होंने इसी चक्र से जरासंध को पराजित किया था। शिशुपाल का वध भी इसी चक्र द्वारा किया गया था।
रामावतार में यह चक्र भगवान राम ने परशुराम जी को सौंप दिया था तथा कृष्णावतार में वापिस करने को कहा था।
आइए जानते हैं भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिलने से जुड़ी कथा के बारे में।
वामन पुराण में बताया गया है एक बहुत ताकतवर असुर था, जिसका नाम श्रीदामा था। उसने सभी देवतओं को पराजित कर दिया था। देवतओं को पराजित करने के बाद भी उसे संतुष्टि नहीं मिली। इसलिए उसने भगवान विष्णु के श्रीवत्स को छीनने की योजना बनाई।
भगवान विष्णु को जब श्रीदामा की इस योजना का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुए तथा उसे दंडित करने के लिए विष्णु जी भगवान शिव की तपस्या करने लगे। तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें एक चक्र प्रदान किया। उस चक्र को सुदर्शन चक्र के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव ने कहा कि यह अमोघ है, इसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता।
यह सुनकर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से सुदर्शन चक्र को परखने की इच्छा व्यक्त की तथा कहा कि इसे परखने के लिए मैं सबसे पहले इसका प्रहार आप पर ही करना चाहता हूँ।
भगवान शिव ने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र को परखने की अनुमति दे दी। विष्णु जी ने जब भगवान शिव पर सुदर्शन चक्र से प्रहार किया तो शिवजी के तीन खंड हो गए। यह सब देख कर विष्णु जी को अपने किये पर बहुत प्रयाश्चित हुआ। इसलिए वह शिवजी की अराधना करने लगे।
विष्णु जी की आराधना से शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि सुदर्शन चक्र के प्रहार से मेरा प्राकृत विकार ही कटा है। मैं और मेरा स्वभाव क्षत नहीं हुआ है यह तो अच्छेद्य और अदाह्य है।
उन्होंने कहा कि मेरे शरीर के जो तीन खंड हुए हैं अब वह हिरण्याक्ष, सुवर्णाक्ष और विरूपाक्ष महादेव के नाम से जाने जाएंगे। भगवान शिव अब इन तीन रुपों में भी पूजे जाते हैं।
सुदर्शन चक्र मिलने के पश्चात भगवान विष्णु तथा श्रीदामा के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र के प्रयोग से श्रीदामा का वध कर दिया। इसके बाद से सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के साथ सदैव रहने लगा।
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